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कार्टून की आवाज़ को बंद करने की कोशिस

सुप्रभात
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कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी की गिरफ्तारी में महाराष्ट्र सरकार को शर्मिंदगी झेलनी पड़ रही है. असीम अपने ऊपर से देशद्रोह का दाग हटानो के लिये जेल से बाहर नहीं आना चाहते. चारों तरफ महाराष्ट्र सरकार की निंदा हो रही है.कभी ममता बनर्जी एक प्रोफेसर को गिरफ्तार कराती हैं. उसके बाद 60 साल पुराने अंबेडकर कार्टून पर संसद में बवाल होता है. सभी राजनीतिक दल इसे हटाने के लिए इकट्ठे होते हैं.

1975 में घोषित आपातकाल में एक सेंसर बोर्ड होता था जो खबरों और कार्टूनों को सेंसर करता था.लेकिन यह अघोषित आपातकाल है जो दुखद है. इसे हम हिटलरी राजनीति भी कह सक्ते है. 65 साल के लोकतंत्र में बड़े बड़े कार्टून आए हैं. बड़े – बड़े लोग और नेता इनकी तारीफ करते रहे हैं और कार्टून की मूल प्रतियों की मांग करते रहे हैं.

बीबीसी न्यूज मे हमने कार्टूनिस्ट सुधीर तैलंग को पढ़ा उन्होने अपनी एक लाईन मे लिखा था कि “जब बीजेपी नेता और भारत के पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह पाकिस्तान स्थित चरमपंथियों के बदले अगवा किए गए जहाज़ के मुसाफिरों के साथ कंधार से वापस आए तो मैंने उन पर एक कार्टून बनाया. इसमें जसवंत सिंह को तालिबान की वेशभूषा में दिखाया था और वे कंधे पर रॉकेट लॉंन्चर उठाकर प्रधानमंत्री वाजपेयी के कमरे में दाखिल हो रहे थे. अगले दिन मुझे जसवंत सिंह का फोन आया और उन्होंने मुझसे उस कार्टून की मूल प्रति मांगी. उन्होंने कहा कि वे तालिबानी पहनावे में बड़े अच्छे लग रहे हैं और उस कार्टून को फ्रेम करवा कर अपने कमरे में लगाना चाहते हैं. ”

एैसा लगता है हमारे देश के कुछ राजनीतिकों के व्यक्तिगत स्तर मे गिरावट आई है वे कार्टून की भाषा को समझ ही नही पाते है.अक्सर देखा गया है कि कमजोर और असहनशील लोगो के बीच यदि एक इशारे की भी बात होती है तो वह सबसे पहले अपने ऊपर उस इशारे को ले लेता है.यह हमारे प्रति हो रहा है. एैसा ही जब कमजोर सरकारों के प्रति होता है तो उन्हें देशद्रोह लगता है. और वे कानून को तोड-मरोड़ कर अपने फायदे के लिए पेश करते हैं.

चाहे अन्ना का आंदोलन हो या रामदेव का हों, कोई उनके खिलाफ कुछ कहे तो वो देशद्रोह है. अगर संसद के अंदर मुक्का घूसेबाज़ी पर उतर आए तो वो देशद्रोह नहीं है. अंग्रेजों ने भी कभी किसी कार्टूनिस्ट को कार्टून बनाने के आधार पर गिरफ्तार नहीं किया. जिस देश में लोकतंत्र है वहां कार्टूनिंग कला फली फूली है. जिस दिन यह कला मर जाएगी लोकतंत्र भी ज्यादा दिन नहीं चलने वाला. विदेशों में अपने नेताओं को नग्न दिखाया जाता है. सीमा हर जगह होती है. लेकिन अपना विरोध जताने के लिये ही इस कला का प्रयोग किया जाता है.

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