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संस्कृति का आधार है – अविष्कार और मानव सीख, संस्कृति व्यक्ति से ऊपर है क्योकि वह वयक्तिगत नही समाजिक होती है, और इसका निर्माण करता स्वयं मानव होता है। इसलिये इसकी एक एैसी विषेशता है कि मानव का जन्म मरण होता रहता है, किन्तु संस्कृति निरंतर बनी रहती है। इसकी प्रकृति चाहे पाश्चात हो या स्वदेशी दोनों ही प्रकार की संस्कृति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होती रहती है। इसमे मानव अपना रहन-सहन, खान-पान, कला , ज्ञान, परंपराऐ आदि सभी कुछ अपने आने वाली पीढ़ी को सिखाता है, और वह पीढ़ी भी अपने आने वाली पीढ़ी को। एैसे ही मानव पूर्वजों द्वारा, मानव केे यौन व्यौहार पर नियंत्रण लगाने के लिये विवाह की परंपरा का नियम बनाया, जिसमें स्त्री – पुरूश के मिलन को विवाहित हो कर गृहस्थ जीवन जीने का ज्ञान दिया गया। इस परंपरा को हमारे पूर्वजों ने यह पाया कि यह नियम समाज के लिये उपयुक्त है तो उन्होने इन नियमों को अपनी आगामी पीढ़ी को दे दिया गया। यह क्रम चलता रहा और इसके परिणाम स्वरूप विवाह एक संस्था के रूप प्रचलन में चला आ रहा है। अब चूंकि संस्कृति पर्यावरण के साथ अनुकूलन करते हुये समय के साथ परिर्वतित होती है। और इसी परिर्वतन का नतीजा है- चिकित्सा के क्षेत्र में हुऐ विकास का एक रूप है -स्पर्म डोनेषन और सरोगेसी तकनीक, लेकिन इस तकनीक का सहारा लेने वाली लड़कियों का बोल्ड डिसीजन में अपने नातेदार- रिश्तेदार की सोच को दूर फेंक कर अपने लिए एक स्पर्म डोनर ढूंढती है जो उनका सरोगेट बनता है। डाक्टरों के लिये सरोेगेसी फायदे का सौदा है दिल्ली मे इस पर 12 से 14 लाख का खर्च आ रहा है। क्या इस संकृतिक परिर्वतन की मूल जड़ स्त्री है जो आज अपना कैरियर और परिवार से जुड़े हर जिम्मेदारियों को निभाने के लिये समाज को बोल्ड बना दिया जा रहा है।
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