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कदम कदम पर इसंान को शिक्षा के स्तर से गुजरना होता है। पहली शिक्षा मॉ के ऑचल से प्रारंभ होती है। जिसमें वह चलना – फिरना, बोलना सिखता है। दूसरी शिक्षा बड़े बुजुर्गो से मिलती है जो इंसान को रीति – रिवाज से परिचत करवाती है, और वहीं से हम ‘‘परंपरा निभाने‘‘ जैसे शब्द से परिचित होते है। तीसरी शिक्षा हमे ‘‘प्रायमरी स्कूल‘‘ मे मिलती है, जो इंसान को घर – परिवार, रिश्ते – नाते से परिचित करवाती है।
चौथी शिक्षा हमे हाईस्कूल से मिलती है, जो इंसान को देश- दुनिया से परिचित करवाती है। शिक्षा के पॉचवें स्तर पर वह देश दुनिया के प्रति जागरूक होता है। और छठवा आता है, ‘‘बैचलर स्तर‘‘ जिसमे इंसान स्वयं अपने कार्यक्षेत्र के प्रति जागरूक होता है। और एक दिन जारूकता इंसान को उसके कार्यक्षेत्र मे ‘‘मास्टर‘‘ बना देती है।
शिक्षा के इन स्तरो से गुजरने के बाद इंसान पूर्णतः शिक्षित माना जाने लगता है। अब उसकी अगला कदम उस जगह पर होता है जहॉ पर वो एक जिम्मेदार इंसान कहलाने का हकदार होता है। वह कदम है, अपनी जिन्दगी की रेस मे शामिल होने का, यहॉ उसे पुनः एक बार एहसास होता है, मॉ के उस ऑचल का जहॉ से उसने चलना और बोलना सीखा था। अर्थात ‘‘गिरना और गिर कर सम्हलना, और फिर उठ खड़े होना‘‘ बस जिन्दगी का यही एक मकसद होता है ‘‘शिक्षित होकर सम्हल जाना और फिर परिवार को सम्हालना‘‘।
गिरना और उठना ये दो पहलू ही इंसानी इरादो को मजबूत बनाते है। क्योकि गिरना यानि कि नुकसान, और उठना यनि की फायदा। इन दोनो पहलू मे से हर इंसान को गिरने का डर हमेशा बना रहता है, और उठने की खुशी हमेशा महसूस करता रहता है। लेकिन जरूरी नही कि अपने स्तर से उठना हमेशा फायदेमंद ही साबित हो और अपने स्तर से गिरना हमेशा नुकसान देय हो।
अगर हमने अपने स्तर पर अभिमान खोया, अज्ञान खोया, निंदा ,डर, निराशा, क्रोध खोया हो तो ऐसे स्तर पर गिरना जीवन मे सुख शांति दे जाती है जिसकी हर इंसान को तलाश होती है। इसी तरह हम झूठ, लालच, छल- कपट से समाज मे ऊॅचा उठने की कोशिस मे हम लगातार नकारात्मक विचारो को प्राप्त करते जाएंेगे। और एक दिन अपनी सुख शांति सब लुटा कर बैठ जाएगे।
जिन्दगी के सफर मे इंसान को साहस, हिम्मत, योग्यता, लगन, और मेहनत नही खोना चाहिए क्योकि इसी से उसको मार्यादा, प्रतिष्ठा, कीर्ति, ज्ञान और चरित्र मिलता है। और इन्ही गुणो के दम पर ही वह धनवान बनता है।
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